Rajya mantri parishad

राज्य मंत्रीपरिषद
मुख्यमंत्री के कर्तव्य तथा अधिकार निम्नलिखित हैं–
वह राज्य के शासन का वास्तविक अध्यक्ष है और इस रूप में वह अपने मंत्रियों तथा संसदीय सचिवों के चयन, उनके विभागों के वितरण तथा पदमुक्ति और लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों एवं महाधिवक्ता और अन्य महत्त्वपूर्ण पदाधिकारियों की नियुक्ति के लिए राज्यपाल को परामर्श देता है।
राज्य में असैनिक पदाधिकारियों के स्थानान्तरण के आदेश मुख्यमंत्री के आदेश पर जारी किये जाते हैं तथा वह राज्य की नीति से सम्बन्धित विषयों के सम्बन्ध में निर्णय करता है।
वह राष्ट्रीय विकास परिषद में राज्य का प्रतिनिधित्व करता है।
मुख्यमंत्री परिषद की बैठक की अध्यक्षता करता है तथा सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धान्त का पालन करता है। यदि मंत्रिपरिषद का कोई सदस्य मंत्रिपरिषद की नीतियों से भिन्न मत रखता है, तो मुख्यमंत्री उसे त्यागपत्र देने के लिए कहता है या राज्यपाल उसे बर्ख़ास्त करने की सिफ़ारिश कर सकता है।
वह राज्यपाल को राज्य के प्रशासन तथा विधायन सम्बन्धी सभी प्रस्तावों की जानकारी देता है।
यदि मंत्रिपरिषद के किसी सदस्य ने किसी विषय पर अकेले निर्णय लिया है, तो राज्यपाल के कहने पर उस निर्णय को मंत्रिपरिषद के समक्ष विचारार्थ रख सकता है।
वह राज्यपाल को विधानसभा भंग करने की सलाह देता है।
पद विमुक्ति
सामान्यत: मुख्यमंत्री अपने पद पर तब तक बना रहता है, जब तक उसे विधानसभा का विश्वास मत प्राप्त रहता है। अत: जैसे ही उसका विधानसभा में बहुमत समाप्त हो जाता है, उसे त्यागपत्र दे देना चाहिए। यदि वह त्यागपत्र नहीं देता है, तो राज्यपाल उसे बर्ख़ास्त कर सकता है। इसके अतिरिक्त मुख्यमंत्री निम्नलिखित स्थितियों में बर्ख़ास्त किया जा सकता है–
यदि राज्यपाल मुख्यमंत्री को विधानसभा का अधिवेशन बुलाने तथा उसमें बहुमत सिद्ध करने की सलाह दे और यदि राज्यपाल के द्वारा निर्धारित अवधि के भीतर मुख्यमंत्री विधानसभा का अधिवेशन बुलाने के लिए तैयार नहीं हो, तो राज्यपाल मुख्यमंत्री को बर्ख़ास्त कर सकता है।
यदि राज्यपाल अनुच्छेद 356 के अधीन राष्ट्रपति को यह रिपोर्ट दे कि राज्य का शासन संविधान के अनुसार नहीं चलाया जा सकता या राष्ट्रपति को अन्य स्रोतों यह समाधान हो जाए कि शासन संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता, तो राष्ट्रपति मुख्यमंत्री को बर्ख़ास्त करके राज्य का शासन चलाने का निर्देश राज्यपाल को दे सकता है।
जब मुख्यमंत्री के विरुद्ध राज्य विधानसभा में प्रस्ताव पारित हो जाए और मुख्यमंत्री त्यागपत्र देने से इन्कार कर दे, तब राज्यपाल मुख्यमंत्री को बर्ख़ास्त कर सकता है।
मंत्रिपरिषद का गठन
मंत्रिपरिषद का गठन राज्यपाल के द्वारा किया जाता है। राज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्ति करता है और मुख्यमंत्री की सलाह पर वह मंत्रिपरिषद के अन्य सदस्यों की नियुक्ति करता है। मंत्रिपरिषद में सामान्यत: उन्हीं व्यक्तियों को शामिल किया जा सकता है, जो राज्य विधानसभा या राज्य विधान परिषद के सदस्य हों, लेकिन विशेष परिस्थिति में मंत्रिपरिषद में ऐसे व्यक्तियों को भी शामिल किया जा सकता है, जो राज्य विधानसभा या विधान परिषद का सदस्य न हो। इस प्रकार नियुक्त किये गये मंत्रिपरिषद के सदस्य को विधनसभा या विधान परिषद का सदस्य 6 माह के अन्दर बनना आवश्यक है। यदि 6 माह के अन्दर वह विधानसभा या विधान परिषद का सदस्य नहीं बन जाता है, तो उसके पद ग्रहण की तिथि से 6 माह की समाप्ति पर स्वत: उसका मंत्री पद रहना समाप्त हो जाता है। परन्तु संविधान में यह व्यवस्था नहीं दी गयी है कि ऐसा व्यक्ति इस्तीफ़ा देकर पुन: मंत्रिपरिषद का सदस्य बन सकता है या नहीं। सरकार ने इस अस्पष्ट प्रावधान का लाभ उठाते हुए उस व्यक्ति को पुन: मंत्रिपरिषद में शामिल कर लेते थे। अब 16 अगस्त, 2001 को सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय देते हुए व्यवस्था दी कि विधायिका का सदस्य निर्वाचित हुए बिना कोई व्यक्ति छह महीने से अधिक मंत्री पद धारण नहीं कर सकता। यदि इस व्यक्ति को छह महीने के बाद विधायिका के उसी सत्र में मंत्री पद पर दोबारा बहाल किया जाता है तो आवश्यक है कि वह चुनाव जीत कर सदन का सदस्य बने। यदि मंत्री पद पर आसीन गैर निर्वाचित व्यक्ति दिये गये छह महीने की अवधि में चुनाव जीतने में असफल रहता है और उस व्यक्ति को दुबारा मंत्री पद पर बहाल किया जाता है तो यह संविधान के 164(1) और 164(4) की योजना और भावना पर आघात होगा।
मंत्रिपरिषद का आकार
प्रारम्भ में संविधान में यह निर्धारित नहीं था कि राज्य मंत्रिपरिषद का आकार क्या होगा। इसका निर्धारण मुख्यमंत्री अपने विवेक से करता था। परन्तु 91वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2004 के अनुसार यह निर्धारित कर दिया गया है कि राज्य मंत्रीपरिषद में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या राज्य विधानसभा के कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत अधिक नहीं होगी।
मंत्रीपरिषद की पदावधि
मंत्रिपरिषद तब तक कार्यरत रहता है, जब तक मुख्यमंत्री पद पर रहता है। मुख्यमंत्री के त्यागपत्र देने या बर्ख़ास्त होने से मंत्रिपरिषद का स्वत: ही विघटन हो जाता है।

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